इस प्रश्न का उत्तर खोजते हुए हमारा साक्षात्कार इस सचाई से होता है कि धर्म सिर्फ आत्मिक या आध्यात्मिक मामला नहीं है, इसके भौतिक आधार भी होते हैं। किसी एक धर्म को मानने वाले लोगों की जीवन पद्धति में बहुत कुछ साझा होता है। इस तरह धर्म व्यक्ति की पहचान बन जाता है और इस पहचान के साथ घर-परिवार, संपत्ति, जमीन, नागरिकता, शासन आदि जुड़ जाते हैं। जब दो धर्मो के लोगों के भौतिक स्वार्थ टकराते हैं, तब जो लड़ाई शुरू होती है, उसका आधार धर्म को ही बनाया जाता है, क्योंकि इससे लोगों को लामबंद करने में सुविधा होती है। दोनों ओर के गरीब और वंचित लोग भी इस लड़ाई में शामिल हो जाते हैं। चूंकि धर्म का संबंध तर्क से कम, आस्था से ज्यादा होता है, इसलिए जड़ता या स्थिरता सभी धर्मो का प्रधान तत्व बन जाती है।