
सर मैं अभी वह संतोष हूं जो अभी-अभी अपने गांव के रेलवे स्टेशन से निकला है जो आगे चलकर गुरु भी हो सकता है या फिर रायसाहब भी.... तो बस आपकी किताब कुछ पंक्तियां मैं यथास्थिति रखना चाहूंगा
एक ऐसी किताब, जो हर उस बच्चे/ विद्यार्थियों की कहानी है जो दिल्ली के मुखर्जी नगर आकर सिविल सर्विस या प्रतियोगि परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं/था।
किताब पढ़ते समय ऐसा लगाता है जैसे कि हम एक अलग इंसान ना हो कर उस कहानी के पात्र या कह लें हिस्सा है। और नीलोत्पल जी ने जिस तरह से इसका किताब का अंत किया है वो तो लाजवाब है।
हम सबके अंदर एक डार्क हॉर्स बैठा है। जरूरत है उसे दौड़ाए रखने की जिजीविषा की।..............
डार्क हॉर्स मतलब, रेस में दौड़ता ऐसा घोड़ा जिस पर किसी ने भी दांव नहीं लगाया हो, जिससे किसी ने जीतने की उम्मीद ना की हो और वही घोड़ा सबको पीछे छोड़ आगे निकल जाए, तो वही #डार्क_हॉर्स है।
नमन है आपको 🙏🙏🙏... लगा जैसे कि पूरा 3 साल मुखर्जी नगर बिता दिया। जय हो!
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Thank You..