आधुनिक प्रेमचन्द : नीलोत्पल मृणाल 

Nilotpal Mrinal नई कृति "औघड़" प्रस्तुत है। 388 पन्नों की यह कृति सहेज कर रखने वाली अनमोल कृति है। मेरा सौभाग्य रहा है कि मेरी औघड़ की प्रति पर Autograph का मै प्रत्यक्षदर्शी रहा।

औधड़, एक ग्रामीण भारत की सामाजिक विषमताओं, विडंबना और भेदभाव को बड़े सलीके के साथ उठाती है। और अन्तर मन में उतरती चली जाती है। जिसमें स्त्री की समाज में दुर्दशा-विमर्श दिल को छू लेने वाली है। - " कितनी विडंबना है कि जिस स्त्री के कोख से सभ्यताओं का जन्म होता है, सभ्यताओं ने उसी को हमेशा मर्यादा और संस्कृति के बोतल में बंद करके रखा। जब मन हुआ शराब की तरह पिया, जब मन हुआ गुलदस्ते की तरह सजाया। और जब भी क्रोधित हुआ तो बोतल पटक कर फोड़ दिया। फूटे बोतल से निकली स्त्रियों ने जमीन पर बिन पानी मछली की तरह तड़प-तड़पकर दम तोड़ा और सभ्यताएं अट्टहास करती रही। यह दुनिया जिस दिन से अस्तित्व में आई ठीक उसी दिन पुरुषों ने अपने लिए 'हमारे अधिकार यह हैं' कि घोषणा कर दी और नारियों के लिए 'तुम्हारे कायदे यह हैं' का निर्णय सुना दिया।"
             
औघड़ को उन सभी लोगों को जरूर पढ़ना चाहिए जो भारतीय समाज को उसके तह तक जाकर समझना चाहते हैं और उसकी गहराई में छुपी सुंदरता और उसकी बुराई को बिना देखे अनुभव करना चाहते हैं। इस साल की एक शानदार कृति।आपका धन्यवाद हो। जय हो।

#आधुनिक_प्रेमचंद